जाड़ा
जाड़ा अब लागे लागल,
चदरियां खिचाये लागल,
जाकिटवा कसाये लागल,
जुतवा पहिनाये लागल,
माने जाड़वा लागे लागल।
रउआ सभे किहा भी जाड़ा आवे लागल का,इहवाँ त अब भोरहा-संझिहा बुझाय लागल बा। आपन-आपन कपड़ा-लाता टीक कर ली लोनी...जाड़ा में पहिने के।
सोच क्या हैं?? आगे बढ़ने के लिए पहला कदम! मंजिल की राह में एक कदम! उसमे भी नवीन सोच के क्या कहने! हमारा प्रयास आपको नई सोच,बेहतर जानकारी तथा जिंदगी की अनबुझ पहेलियों से रूबरू कराना है। आप यहाँ पर अपने विचार भी शेयर कर सकते है। हमारे ईमेल आईडी anuragranjan1998@gmail.com पर सुझाव भेजे। आपका, अपना अनुराग रंजन।
जाड़ा अब लागे लागल,
चदरियां खिचाये लागल,
जाकिटवा कसाये लागल,
जुतवा पहिनाये लागल,
माने जाड़वा लागे लागल।
रउआ सभे किहा भी जाड़ा आवे लागल का,इहवाँ त अब भोरहा-संझिहा बुझाय लागल बा। आपन-आपन कपड़ा-लाता टीक कर ली लोनी...जाड़ा में पहिने के।
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