Sunday 6 December 2015

रानी लक्ष्मी बाई(19 नवंबर)

जन्मदिन विशेष)
महिला सशक्तिकरण के जनक:-रानी लक्ष्मीबाई

जब भी महिला सशक्तीकरण के चर्चा छिड़ेला,केनहूँ महिला खातिर कउनो आवाज उठेला। त,हमार टोही मन एकेगो सवाल करेला की एकर अगुआ के रहल होई??उ मर्दानी के रहल होई जे एकरा खातिर सबका से पहले प्रयास कईले होइ??

समूचा विश्व के वीरता के राह दिखावे वाली।शौर्य,तेज,दया,करुणा आउर देशभक्ति के जज्बा जेकर पोर-पोर में भरल रहे। माई के मनु,बाजीराव के छबीली आ सुभद्रा कुमारी चौहान के खूब लड़ी मर्दानी,ऊ त झाँसी वाली रानी रहली। हमनी के प्रेरणा आउर सभकर चहेती रानी लक्ष्मीबाई के जन्म 19 नवम्बर 1835 में भईल रहे।

माई भागीरथी देवी आ बाबूजी मोरपंत तांबे के उच्च संस्कार से बबुनी मनु के मन आउर ह्रदय महान गुणन से पाटल रहे।लईकाइये में माई से धार्मिक,सांस्कृतिक आउर शौर्य गाथा सुनके मनु के मन में देशप्रेम आ वीरता के लहर उठे लागल रहे। उनकर नाम मणिकर्णिका रखाईल बाकि सभे प्यार से मनु पुकारत रहे।

पांच साल के उमर में माई के साथ छूटल त मनु बिठूर आ गईली। उहवाँ मल्लविद्या,घुड़सवारी आ शस्त्रविद्या सिखली। उनकर बाबूजी अपना संघे उनका के बाजीराव के दरबार में ले जाई। चंचल आ सुन्दर मनु सबके भा गईली। बाजीराव प्यार से उनका के 'छबीली' बोलावस।

मनु के बिआह 1842 में झांसी के राजा गंगाधर राव के संघे बहुत धूम-धाम से भईल। बिआह के बाद लक्ष्मीबाई नाम रखाईल। एह तरह से काशी के बेटी झांसी के रानी लक्ष्मीबाई बन गईली।
1851 में पुत्र-रत्न के आगमन भईल,बाकि ईश्वर के मर्जी कुछ आउरे रहे। बेटा भईला के जश्न ढेर दिन तक ना मन सकल,तीन महीना के होत-होत बेटा चल बसल। गंगाधर राव से ई आघात ना सहाईल। लोग के निहोरा पर एगो पुत्र गोद लिआइल आ नाम दामोदर राव रखाइल। गंगाधर के मरला के बाद जनरल डलहोजी,दामोदर राव के झाँसी के उत्तराधिकारी माने से मना क दिहलस। रानी अग्रेंजन के खिलाफ युद्ध के घोषणा कईली आ कहली की झाँसी अंग्रेज के कउनो कीमत प ना दिहे।

एह तरहा,सन सनतावन में स्वतंत्रता के पहिलका बिगुल फुकाँ गईल। स्वतंत्रता के आग समूचा देश में धनके लागल। रानी ईटा के जबाब पत्थर से दिहली। अंग्रेजन के डेग उखड़े लागल। रानी के साथे मुन्दर आउर झलकारी सखी भी आ डटल लोग। किला के किलाबंदी भईल। रानी के कौशल देखि के अंग्रेजन के सेनापति सर हथरोज भी अकचकाईल।

आठ दिन तक गोला बरसावला के बादु फिरंगियन के हाथे किला ना लगल। तब कूटनीति क के झाँसी के ही विस्वासघाति सरदार दूल्हा सिंह के मिला के,दक्षिण ओरी के दुआरी खुलवा लिहलन सन। अंग्रेज सेना किला में घुस गईल। लूटपाट आ मार-काट के बेरहम दृश्य बनल। ऐगो हाथ में तलवार लेले,पीठ प बेटा के बान्हले रानी रणचंडी के रूप ध लिहली। शत्रु दल के संहार करे लगली। झाँसी के वीर सैनिक भी फिरंगीयन प पिल पड़ल लोग।जय भवानी आ हर-हर महादेव से रणभूमि गूँज उठल। रानी अंग्रेजन से घिर गईली। कुछ विस्वासपात्र लोग के सलाह पर रानी राह बनावत कालपी के तरफ बढ़ गईली। दुर्भाग्य बस एगो गोली रानी के गोड़ में लागल आ गति धीरे भईल। अंग्रेज सिपाही उनका निचिका पहुँचल। रानी आपन घोड़ा दौड़वली बाकि दुर्भाग्य से एगो नाला बीच रहिया में आ गईल। ओहि बेर दुसरका गोरा सैनिक हृदय प वार कई देलस। अनघा घायल भईला के बादो ऊ दुनो आकर्मीयन के वध क दिहली।

पठान सरदार गौस खाँ अभियो रानी के संघे रहस। उनकर रोद्र रूप देखि के सब भाग गईलन सन। स्वामिभक्त रामदेव देशमुख अंत तक रानी के साथ दिहले। ऊ रानी के खून से सनल देह के निचके बाबा गंगादास के कुटिया पहुँचइले। रानी व्यथा से व्याकुल पिए के पानी मंगली। गंगादास पानी पिअइलन। रानी अपना सम्मान खातिर हर घरी सजग रहलीं। उनकर इहे कामना रहे कि अगर उ जंग के मैदान में मृत्यू के गला लगावास,तबो उनकर शव अंग्रेजन के हाथे ना लागे। अद्भुत अउर अदम्य साहस के संघे अंतिम बेरा ले लड़े वाला रानी के अंत 17 जून 1858 में भईल। बाबा गंगादास हाल्दिये कुटिया के ही चिता बना के उनकर अंतिम संस्कार क देले,जेसे अंग्रेज उनका के छु भी ना सकलन सन।ग्वालियर में आजो रानी के समाधी उनकर गौरव-गाथा इयाद दियावेला।

एहसे से हमरा नजरिया में ऊ पहिलका मर्दानी रहली जे महिला के आदर्श भईली। ऊ एह बात के उम्मीद जगवली की मेहरारू लोग कमजोर नइखे आ उहो लोग के सम्मान बा। आ ओह खातिर सभे के ताल मिलावे के होई।

अइसन वीरांगना से अजुओ राष्ट्र गर्वित आ प्रफुलित बा। रानी लक्ष्मीबाई के शब्दन में बान्हल मुश्किल बा। ऊ त समूचा विश्व में अदम्य साहस के चिन्हासि हई। अश्रुपूर्ण शब्दांजली से शत-शत नमन करत बानी।

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