Thursday 11 May 2023

विरोधीयन के उहे हरा पावेला...

छोट छोट मौक़ा के भी ख़ुशी में तब्दील जे कर पावेला।
सबका चेहरा प पुरकस मुस्कान उहे लेआ पावेला।।

साँच के रहिया प निरंतर जे चलत रह पावेला।
हक आ सम्मान ला अंत तक उहे लड़ पावेला।।

दुःख आउर दर्द से आखिर तक जे जूझ पावेला।
राह में आवेवाला बाधा के उहे पार कर पावेला।।

प्यार आउर अपनत्व के महत्व जे जान पावेला।
हर रिश्ता के मान मर्यादा उहे राख पावेला।।

चेहरा प फईलल उदासी के जे पढ़ पावेला।
सभकर दुःख दर्द के उहे दूर कर पावेला।।

दोस्त आउर दुश्मन में फर्क जे समझ पावेला।
आपन हर कदम के उहे साध के चल पावेला।।

ताना आ आलोचना के आपन ताकत जे बना पावेला।
आज ना त काल्ह विरोधीयन के उहे हरा पावेला।।

Monday 8 May 2023

माई जे जुड़ल एगो इयाद...

जब हम 7-8 साल के होखेम त हमरा घरे कवनों काम होत रहे, जाना लो बॉस फारत रहे आ हम ओहिजा खेलत रही। बाबूजी के शख्त हिदायत रहे के हमरा दाब नईखे छुए के। तलही माई कवनों काम ला बाबूजी के बोलवली। हमरा मौक़ा लह गईल। जाना लो तनी दूर रहे, दाब उठा के टेस्टीआ लिहनी। अब ई ना बुझाइल की लकड़ी काटल जाला की कटाये के लिखल रहे,अंगूरी प उतार लिहनी एक दाब। डरे केहू से ना कहनी आ खून के दोसर अंगूरी से रोके के कोशिश करत भीतर चल गइनी। ओहिजा माई के दांत में दर्द प डॉक्टर लगे ले जाए के चर्चा चलत रहे। हम डरे केहू से कुछ बिना कहले ओहिजा खाड होक दुनु हाथ पीछे क के खून रोके के कोशिश करे लगनी। माई पुछली की कुछ भईल बा का?? त हम कह देनी की ना कहा कुछ भईल बा... थोड़ देर बाद खून चुवल शुरू हो गईल आ माई के नजर पड़ गईल। माई कहे लगली हम पहिलही कहनी ह की ई शांत रहे वाला ना ह। सब काम छोड़ी के बाबूजी हमरा के डॉक्टर लगे ले गइनी.. आ हमार इलाज भईल। घरे आ के बाबूजी जब माँ से दांत ला डॉक्टर लगे ले चले के कहनी,त माँ कहली की कईसन दांत दरद,सब ठीक हो गईल बबुआ ठीक हो जाव बस! आज जब कबो ओपर चर्चा होला त माँ कहेली की उ दांत में अब दर्द कबो ना हो सकेला। तब से हम प्रतिज्ञा ले लेवनि की माई से कवनो सच ना छुपावे के हर संभव कोशिश करब। आज ले त नईखी छुपलवे,देखि आगे का होता! खैर,माई हिय आगहु निबह जाई...
दुनिया के मय माई लो के प्रणाम करत सभे के मातृदिवस के बधाई।
अनुराग रंजन।

Sunday 30 April 2023

याद है हमे आज भी

याद है हमे आज भी

वो बचपन में हमारा खेलना,
मासूमियत से हर गम को झेलना,
वो बात-बात पे चहकना,
याद है हमे आज भी।
आज भी खेलते है हम खेल,
किसी के जज्बात से तो,
किसी के अरमान से,
किसी के उम्मीद से तो,
किसी के विश्वास से।
सलीके से पहुँचते है अंजाम तक,
खुशियों से मुस्कुराना होता है,
आज भी हर अंजाम के बाद।
कभी शौक से पढ़त थे हम,
आज प्रतिस्पर्धा में पढ़ते है हम,
तब होता था टॉप करने का उन्माद,
आज है दौर में बने रहने का प्रयास।
वो बचपन की बारिश,
स्कूल की छुटटी,
होता था हर क्लास का इन्तेजार,
बारिश में भी कर आते थे,
कोचिंग की क्लास।
आज भी होती है बारिश,
उम्मीद और चिराग की,
पलक-पावड़े बिछ जाते है,
एक अदद छुटटी की आश में।
उम्मीद जगा जाती है,
कह जाती है बारिश,
छोड़ आज की क्लास,
फिर भी कर आते हर क्लास हैं।
तब था दुनिया जितने का विश्वास,
रोज जीता करते थे,
सपनो के हजारों महल।
आज भी है विश्वास,
जीत लेंगे हर जंग,
शायद इसिलए है आज भी,
जिंदगी की असल जंग में विराजमान।
याद है हमे आज भी।

अनुराग रंजन

छपरा(मशरख)


Tuesday 11 April 2023

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Tuesday 4 April 2023

निगाहें ढूंढती है गाँव के उन बाजारों को...

निगाहें ढूंढती है गाँव के उन बाजारों को...

गाँवो में बाजार लगाने की सालो पुरानी प्रथा अब विलुप्ति के कगार पर है। एक समय था जब प्रत्येक गाँव में निर्धारित दिन/तिथि को बाजार लगता था। कुछ समय पहले तक शहरों की तरह गावों में स्थाई दुकाने नही हुआ करती थी। कई घरो के चूल्हे इन बाजारों से होनी वाली आमदनी से जला करते थे। तब कम पूंजी वाले दुकानदार भी आसानी से अपनी चलती-फिरती दुकान लगाया करते थे। उन्हें इन दुकानो को लगानें के एवज में जमीन मालिक को या तो मामूली रकम अदा करनी होती थी या फिर उसके बदले में समान दे दिया करते थे। कई दफा तो दरियादिली में लोग उन्हें मुफ़्त में ही दुकान लगाने दिया करते थे।
अब बाजार के उन छोटे दुकानों की जगह स्थाई दुकाने लगती है। हजारों की रकम उसके एवज में जमा की जाती है। नतीजतन स्वतः ही समानो के दाम बढ़ जाते है। हाँ ये सच है कि अब जब जरूरत होती है,हमे पसंद या जरूरत की वस्तुएं उसी वक्त मिल जाती है। परन्तु इस बाजारवाद के नए स्वरूप ने सैकड़ो छोटे दुकानदारो को उनके पारम्परिक पेशे से जुदा भी तो किया है।
तब लोग मिल-बाटकर अपनी जरूरते पूरी कर लेते थे। लोग समूहों में बाजार जाते थे,अत: गाँव-जवार के लोगों के मिलन का एक केंद्र होते थे ये बाजार। अब जिसे जिस की जरूरत है वह उसी वक्त खरीद लाता है। पहले लोग एक दूसर से मांगकर अपनी जरूरते पूरी किया करते थे जिससे आपसी प्रेम और सोहार्द बना रहता था। अब वो भाईचारा भी खात्मे की ओर है....
अपने विचार दे।

अनुराग रंजन
छपरा(मशरख)