Tuesday 31 December 2019

परत , प्रेम के नाम पर षडयंत्र के विरुद्ध शंखनाद है-आशीष त्रिपाठी

परत , प्रेम के नाम पर षडयंत्र के विरुद्ध शंखनाद है । 

जी हाँ ! पुस्तक समाप्त करने के पश्चात पहला भाव यही आया है मन में । लेखक की लेखन क्षमता के बारे में कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है , किन्तु जो विषय चुना है उन्होंने वह अद्वितीय है । सर्वेश यदि  पुस्तक के सम्बन्ध में सूचित करते समय कहते हैं कि इस विषय पर लिखी यह पहली किताब है तो मेरे ज्ञान के अनुसार गलत नहीं कहते । इसके लिए जिस हिम्मत की आवश्यकता होती है , वह कुछ ही लोगों में होती है और सर्वेश उनमें से एक हैं । इस उपन्यास में लेखक ने न तो कहीं अपनी भावनाओं के उफान को कम करने का प्रयास किया है और न ही कलम की धार को कुंद होने दिया है । विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से राजनीतिज्ञों और व्यवस्था को जिस तरह से धोया है लेखक ने उसकी जितनी प्रशंसा की जाय कम है , अद्भुत । पूरा उपन्यास आपको आपके ही समाज से परिचित कराता निर्बाध गति से आगे बढ़ता है और पुस्तक के अंत में आपको अपनी पूर्णता का बोध करा के दम लेता  है । जबरदस्त रोचकता लिए यह उपन्यास अपनी प्रवाहपूर्ण प्रस्तुति के लिए भी जाना जाएगा , मैंने इसे एक दिन में खत्म किया है ।

उपन्यास में दो कथानक समानांतर रूप से चलते हैं । एक चुनावी राजनीति पर आधारित है तो दूसरा एक युवती के साथ हुए छल पर । दोनों कथानक ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित हैं तथा लेखक दोनों के साथ पूर्णतः न्याय कर पाने में सफल हुए हैं । 

उपन्यास की भाषा शैली बेहद सधी , सहज और ग्राह्य है । पात्रों का गढ़न और उनके साथ न्याय करने में लेखक ने कोई चूक नहीं की है । ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित यह उपन्यास आपको रघुनाथपुर गांव में ले जाकर खड़ा कर देता है । फिर चाहे कमलेश मुसहर हो या आलोक पांडेय , मुसाफिर बैठा हो या अरविंद सिंह या फिर फातिमा , हर पात्र आपको अपने आस - पास का ही नजर आता है । शिल्पी और श्रद्धा की दोस्ती आपके मष्तिष्क में कॉलेज जाती दो सहेलियों की हँसी ठिठोली की छवि अंकित कर देती है । छोटे - छोटे पात्र भी उपन्यास में महत्त्वपूर्ण बन पड़े हैं । उपन्यास की नायिका शिल्पी का चरित्र गढ़ने में लेखक ने कमाल किया है । यह ऐसा चरित्र है जो प्रारम्भ में सामान्य स्कूली लड़कियों सी चुहलबाजी करती दिखती है , बीच में उससे नफरत होने लगती है और जैसे - जैसे पन्ने पलटते जाते हैं  , उसके प्रति असीम सहानुभूति और दया का भाव जागृत हो उठता है । अंत में ?.....अंत में भी जो भाव आपके हृदय में उपजेंगे वो आपको कत्तई निराश नहीं करेंगे ।

उपन्यास व्यक्ति के सामान्य जीवन के विविध प्रसंगों का सटीक रेखांकन करता है । परमेश्वर शाह और उनकी पत्नी का झगड़ा और झगड़े के बाद सुलह की घटना आपको हंसाएगी भी और आपके मधुर भावों का पोषण भी करेगी । कबूतर मुसहर की मृत्यु का प्रसंग उन प्रसंगों में से है जो आपको पेट पकड़ कर हँसने को विवश कर देगा , बावजूद इसके यह प्रसंग स्वार्थ की राजनीति की परत भी उधेड़ता है । रामकेवल राम का हलवाई की दुकान पर बैठकर बिना पहचाने लोगों पर वोट के नाम पर खर्चा करना , और बाद में उन्हीं लोगों के द्वारा पिट जाना , चुनावों की जमीनी हकीकत से रूबरू करायेगा । लेखक ने विवाह पर भी बहुत ही अच्छा लिखा है , श्रद्धा और पार्थ के विवाह का प्रसंग पढियेगा , इस संस्कार के विषय में मुझे तो कई नई जानकारियां मिलीं । यह लेखक का कौशल ही है कि बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के हर स्थिति और घटना का दृश्यांकन मष्तिष्क में अपने आप हुआ जाता है । 

ज्यादातर संवाद तीर की तरह कलेजे में लगते हैं । लगभग हर तीसरे पृष्ठ पर कोई न कोई लाइन आपको अवश्य ही मिल जाएगी जिसे आप अंडरलाइन करना चाहेंगे , याद रखना चाहेंगे । शिल्पी के पिता विनोद लाल का कचहरी में अपनी बेटी के लिए "मुर्गी हलाल हो गई "  सुनना और आहत होकर जमीन पर बैठ जाने के बाद चिल्ला - चिल्ला कर रोते हुए कहना " वह मुर्गी नहीं है रे सुअर ! वह मेरी बेटी है "....आपकी आँखें नम कर देगा । ऐसे न जाने कितने संवाद हैं जो आपको भावुक करेंगे , हंसाएंगे , सोचने पर विवश करेंगे । लेखक की मानव मनोविज्ञान पर अच्छी पकड़ है , इसका उदाहरण वो अपनी कई कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत कर चुके हैं । शिल्पी के घर से भागने के बाद समाज के व्यवहार से आहत उसके छोटे भाई बहन की मनोस्थिति का वर्णन लेखक ने बेहद शानदार तरीके से किया है , इसके साथ - साथ गायत्री और विनोद लाल का भी। बाकी पुस्तक की कहानी पर कुछ लिखना इसको लेकर पाठकों की उत्सुकता को भंग करना होगा ।

पुस्तक की छपाई साफ और सुपाठ्य है । पन्ने उम्दा क्वालिटी के हैं । किताब हाथ में अच्छी लगती है । इसके लिए प्रकाशक बधाई के पात्र हैं ।

          आज से पहले भी कुछ एक अच्छी किताबों पर अपनी प्रतिक्रिया दी है , परत के लिए विशेष आग्रह करूँगा कि आप इसे जरूर लाएं , पढ़ें , घर में बड़े हो रहे बच्चों को पढ़ाएं और संजो कर रखें ताकि आपकी आने वाली पीढ़ी भी एक कड़वी सच्चाई से रूबरू हो सके । वो जान सकें कि जिस माहौल में वो जी रहे हैं उसमें अज्ञानता , असुरक्षा का सबसे बड़ा कारण है । इस पुस्तक में वह सामर्थ्य है जो व्यक्ति को गुमराह करने वाले तमाम झूठ की परत को झाड़ कर रख देगी । 

परत मात्र एक पुस्तक नहीं , आज के समाज की सच्चाई है , इससे सबको रूबरू होना चाहिए ।

आशीष त्रिपाठी
   गोरखपुर

सर्वेश तिवारी श्रीमुख जी की कालजयी उपन्यास "परत" की समीक्षा प्रीतम पाण्डेय के कलम से....

परत ,सर्वेश तिवारी श्रीमुख के द्वारा लिखा गया पहला उपन्यासहै । परत , एक गाँव की कहानी है । गँवई समाज की व्यथा है जो होती तो नजरों के सामने है लेकिन हम सब उस व्यथा पर चुप रहते हैं । हम ये नही सोचतें कि भविष्य पर इसका कैसा असर पड़ेगा । हम सब जानते हैं कि गाँव की कहानियाँ गर्मियों में एसी और जाड़े में हीटेड कमरों में बैठकर लिखी जाती हैं । कमोबेश सारे लेखकों की कहानियों में गाँव मिल ही जाता है । लेकिन परत गाँव में घटी हुई ऐसी कहानी है जो लेखक से लिखवाने के लिए  पीपल के पेड़ चबूतरे पर , बाहर कोठरी में , खेत की मेढ़ तक ले गई ।
परत वैसा उपन्यास है जिसे पढ़कर आपको लगेगा कि ये घटना मेरे बगल की है । आपके आँखों में सारे दृश्य नाचते हुए मिलेंगे । लगेगा जैसे परत को आपने जीया है । परत वैसा उपन्यास है जिसकी प्रतीक्षा लोग कई महीनों से कर रहे थें और जब यह अमेजन पर उपलब्ध हुई तो वैसे ही खुली जैसे कोई परत खुलती है । अमेजन पर उपलब्ध होने के मात्र आठ घंटे भीतर ही बेस्ट सेलर की श्रेणी में पहुँच जाना किसी उपन्यास के लिए बहुत बड़ी उपलब्धी है । उसके पाठक झूम उठते हैं ऐसी उपलब्धी पर । सोचिए लेखक की प्रसन्नता कितनी ऊपर तक गई होगी ? 
परत जब लोगों के द्वारा पढ़ी जाएगी तो इसपर टिप्पणीयों के बाग लगेंगे और उस बाग में कई गुल खिलेंगे । लोग कहेंगे , यार लेखक ने जीवन को लिख दिया है । लेखक ने अपना हिम्मत दिखाया है । उसके भीतर की आत्मा ने उसे ऐसा लिखने को प्रेरित किया है । परत के आने से पहले उसके कुछ अंशों के सुधारक होने के नाते ये मैं दावे के साथ कहता हूँ कि परत भी आपको वही दिखाएगी जो समाज आज हमें दिखा रहा है । समाज जिसका दंश झेल रहा है । जिसे भुगत रहा है । परत आपकी रूह हिला देगी । आप कह उठेंगे , समाज ये क्या कर रहा है ? 

परत को बहुत बधाई है । उपलब्ध होने के आठ घंटे के भीतर ही इसका बेस्ट सेलर की सूची में आ जाना यह सिद्ध करता है कि लोग इसकी प्रतीक्षा में कितने बेचैन थें । लोगों का क्या प्रतिउत्तर रहा ,यह सिद्ध कर रहा अमेजन पर इसका बेस्ट सेलर की सूची में होना । परत पढ़िए , क्योंकि इसमें आपको इतने उद्धरण(Quote) मिल जायेंगे जो युगों तक आप नही भूलेंगे । परत पढ़िए , क्योंकि यह परत है जो परत दर परत खुलेगी । आप जितना पढ़ेंगे उतना आपको आपका समाज दिखेगा । उस समाज के भीतर हो रही घटनायें दिखेंगी । वह सबकुछ दिखेगा जिसे हम सब देखते हैं लेकिन मूकदर्शक होकर । परत आपको जगाएगी ।परत उन्हीं आँखों की परत खोलेगी । परत को पढ़िए । 

जय हो । जय हो आप सबों की ।

प्रीतम पाण्डेय
 छपरा, बिहार