Thursday 1 October 2015

याद है हमे आज भी

वो बचपन में हमारा खेलना,
मासूमियत से हर गम को झेलना,
वो बात-बात पे चहकना,
याद है हमे आज भी।
आज भी खेलते है हम खेल,
किसी के जज्बात से तो,
किसी के अरमान से,
किसी के उम्मीद से तो,
किसी के विश्वास से।
सलीके से पहुँचते है अंजाम तक,
खुशियों से मुस्कुराना होता है,
आज भी हर अंजाम के बाद।
कभी शौक से पढ़त थे हम,
आज प्रतिस्पर्धा में पढ़ते है हम,
तब होता था टॉप करने का उन्माद,
आज है दौर में बने रहने का प्रयास।
वो बचपन की बारिश,
स्कूल की छुटटी,
होता था हर क्लास का इन्तेजार,
बारिश में भी कर आते थे,
कोचिंग की क्लास।
आज भी होती है बारिश,
उम्मीद और चिराग की,
पलक-पावड़े बिछ जाते है,
एक अदद छुटटी की आश में।
उम्मीद जगा जाती है,
कह जाती है बारिश,
छोड़ आज की क्लास,
फिर भी कर आते हर क्लास हैं।
तब था दुनिया जितने का विश्वास,
रोज जीता करते थे,
सपनो के हजारों महल।
आज भी है विश्वास,
जीत लेंगे हर जंग,
शायद इसिलए है आज भी,
जिंदगी की असल जंग में विराजमान।
याद है हमे आज भी।

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