इश्क में पत्तल-गिलास भईल

#माटी #भोजपुरी
#इश्क में पत्तल गिलास भईल

जवन आँखि के चमक कभी प्रकाशवा रहत रहे,ना जाने केतना दिन बाद आशा ओकरे लगे फ़ोन कईले रही। उ प्रकाश के अपना गाँवे बोलवले रही। शहरी प्रकाश जब भुखासल पियासल टमटम से उतर के जोगी सिंग के घर जोहत रहे, त एक जाना कहले जो रे मंगरुआ इनका योगी सिंग के घरे छोड़ आव। बुझाता ईहा के जोगी बाबू के लइकी के बियाह में आईल बानी।
आशा के दुआरी प चहूँप के उ आशा के फ़ोन लगवले।
आशा कहली हम थोड़ देर में बाहर आएम तले तू पत्तल-गिलास चलाव, ना त केहु तहरा के चिंह लिही। पत्तल गिलास चलावत प्रकास ईहे सोचत रहे हम त इश्क में पत्तल-गिलास हो गईनी। खैर ई त एगो शहरी के गवहि बनावे के आशा के प्रोग्राम रहे,काहे की जोगी सिंग के ईहे शर्त जे रहे...उलटा बहत एह पलायन के कहानी के ई अंश एगो कहानी के बा जवन भोजपुरी किताब के हिस्सा बनावे के उदेश्य से लिखाइल बा।
जय भोजपुरी।

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